tag:blogger.com,1999:blog-23441966914561119082024-03-13T22:02:55.491-07:00seep ka sapnaAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.comBlogger350125tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-8818041318577309722014-08-18T05:22:00.001-07:002014-08-18T05:22:46.531-07:00उसकी ही याद में
वीणा का हर तार बजने लगा
मौसिम जो ऐसा था
और मुझ पर प्रेम की नज़र भी डाली थी उसने
मुझसे निसरी थी राग
बिन बांसुरी स्वरलहरियां नृत्य करने लगी
और बज उठा हर तार वीणा का
स्पंदन प्रेम का झंकृत कर गया समय को
इतनी ऊर्जा और उल्लास दे गया
कि आज भी उसकी ही याद में
रचित हो रही
फिर ,फिर, दुनिया ...................................राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-15333736367263697662014-08-12T22:07:00.000-07:002014-08-12T22:07:01.809-07:00हां ,प्यार ही है जीवन का अर्थ
क्या है अर्थ इन हवाओं का
इन हरे पेड़ों का
इस बहती नदी का
चहचहाती चिड़िया का
खुद मेरा
मेरे जीवन का
क्या है अर्थ
कहा है ,कैसे है
बर्गलाओं मत
तुम्हे कसम है
मेरे प्रश्न को यूँ हवा में उछालो मत
हल ढूंढो
मैं क्यों जी रहा हूँ
क्या करने जी रहा हूँ
मेरे न जीने से क्या फर्क होगा
कुछ सवाल है जो मुझे अजीब भूलभुलैया में ले जाते है
मगर न जाने क्यों मेरे हर प्रश्न के जवाब मे
तुम खड़ी मुस्कुराती Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-2471908470347295532014-08-01T06:24:00.001-07:002014-08-01T06:24:27.454-07:00बारिश --1
बारिश --1
बादल है छाये उमस भी है हवा भी है ठहरी हुई बिजली भी चमकी है मोरे बोले है और नाचे है मगर बरसात कहा याद है झरती हुई आँख से तुम बिन बारिशें हो रही यूहीकई बरसों से .........राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-19927888193902874882014-08-01T06:23:00.000-07:002014-08-01T06:23:08.223-07:00बारिश --2
बारिश --2
--------------------------------------------------------------------------------
सुबह से ही आलस मरोड़ रहे है बादल यहाँ मेरे शहर में आकर बतला रहे है कि रात खूब बरसाया मैंने पानी उसके गावं थक गया हूँ जरा सो लेने दो फिर जग कर जाऊँगा भर लाऊंगा तुम्हारे लिए भी पानी लौटूंगा जरूर अभी नींद लेने दो और हां सुनो बहुत नहायी वो छत पर खोलकर अपने लम्बे बाल और Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-90363272976864574182014-07-28T21:05:00.002-07:002014-07-28T21:05:41.062-07:00ईदी
ईदी
===================================
रमजान के सारे रोजे
तुम्हारे नाम करता हूँ
आज ईद के दिन
ये ईदी
तेरे सरापे में
सितारों की तरह
लगाता हूँ
रमजान की सारी नमाज़ें
सारी दुवाएं तुम्हे देकर
अब मैं वज्जू करता हूँ
नयी नमाज के लिए .........राकेश मूथा
(ईद मुबारक ...आप सब स्वस्थ रहो ,प्रस्सन रहो ,आनंद करो )
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-34131214216327063372014-07-27T06:31:00.000-07:002014-07-27T06:31:01.149-07:00बदल रहा है समय
समय हंस रहा है
पल पल भर में छूटते जाते है
दर्द बिछुड़ने का
हंसी के पार्श्व में बजते संगीत सा
नयी संवेदनाओ से भर
समय को
बदल रहा है
समय .................................राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-57139962045552752332014-07-21T21:32:00.001-07:002014-07-21T21:32:41.626-07:00प्रेम में ये कैसी दरार
प्रेम में क्यों दीखता है
उसके कुछ न होने का दर्द
वो जो भी है मेरा है
कुछ हो न हो
मुझे इससे क्या
मेरा प्रेम है
इतना काफी क्यों नहीं
शुरू प्रेम के दिनों के बाद
प्रेम जितना नहीं छाता
ये दर्द उससे ज्यादा मुझे सालता .
प्रेम में ये कैसी दरार .....राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-13730421468171743342014-07-21T08:23:00.001-07:002014-07-21T08:23:50.081-07:00होगा कभी उजाला शायद
धुंधली सी एक रेख है
जिस पर दिन रात है
सांस एक आहट भी
देहलीज को चौंकाती है
कभी आशा में
निराशा में कभी
दरवाजे की कड़ियाँ बजाती है
कपडे चलते फिरते दौड़ते दीखते है
बुझे कोयले पर आई राख की तरह
स्थतियां चेहरे को ढांप
खेत के डरोने का रूप दे गयी है
मगर ये धुंधली सी रेख
जिस पर दिन से रात होती है
और फिर दिन आ जाता है
अभी तक सांस को चलाये हुए है
गहरे और गहरे में से निकलती निश्वास
अब भी &Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-63684483871216084222014-07-19T21:19:00.000-07:002014-07-19T21:19:18.436-07:00रहूँ हमेशा नदी एक बहती हुईं
नदी को समझ नहीं आया
बरसात का अर्थ
वो केवल यही समझी
बरसात में
भर गयी हूँ
बूँद बूँद को सहेज
बह रही हूँ
बादल सफ़ेद से भूरे हुए ,काले हुए
गरजे ,गुस्से से काँप चमके बिजली ज्यू
मगर समझी नहीं नदी
क्या कहना चाहा
बादल ने यूँ गरज कर ,चमक कर ,बरस कर
ज्येष्ठ की दुपहरी में
जब उड़ने लगी धूल
तब याद आये बादल नदी को
और समझी नदी
बादल वो है
जो हर हाल मेरे वुज़ूद को बनाये रखना चाहता है
अपने Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-52233237770995322322014-07-16T08:01:00.000-07:002014-07-16T08:01:09.684-07:00उग गए यू ही से पौधे की तरह
प्रेम की बात कर कर के
लड़की वो भुलावा दे गयी मुझे
लगा मुझे की मुझे भी चाहती है एक लड़की
वो जो लेखिका भी है
आज अकेला इस सुनसान में
उग गए यू ही से पौधे की तरह
हवा के साथ होता बाय साय
चीख चीख कह रहा हूँ
मैंने कब चाहा होना
हरा ???
जो होना पड़ा मुझे यूँ पीला ........राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-52482685416695445252014-07-16T06:29:00.001-07:002014-07-16T06:29:37.973-07:00मिल गया वो,
मिल गया वो
--------------------------------------------
अँधेरे में
खिल रही है
लगातार
महक रही है
रात की रानी
सपनो में भी
महकते हुए जब खिले कोई यूँ
तो समझो
मिल गया
वो ............................राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-22477583513308070612014-07-12T21:37:00.001-07:002014-07-12T21:37:37.441-07:00 हूँ मगर परछाई
हूँ मगर परछाई
------------------------------------------------------------------------
सख्त जमीन पर
कभी पेड़ों पर ,कभी नदी की तेज बहती धारा पर
कभी पर्वत के सिखर पर
कभी टूटे फूटे रास्तों के बड़े बड़े गड्ढो में
कभी किसी पोखर, किसी नाले में
मंदिर की धवजा पर
मस्जिद की मीनारों पर
गुरुद्वारा के पवित्र सरोवर पर
जैसा मिला रूप
जैसा मिला स्थान होती रही हूँ
कभी न होते हुए
आकार हैAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-91774146503703181922014-07-07T17:09:00.002-07:002014-07-07T17:09:44.720-07:00चलते रहो
चींटी की तरह चलते रहो
हर बाधा को जीतने का एक ही तरीका
चींटी की तरह
बचते बचाते
चलते रहो
हर पल
पहुँच जाओगे जरूर
शिखर तक ..........राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-88330179476280228902014-07-06T21:46:00.002-07:002014-07-06T21:46:54.539-07:00अब छायी ही रहती है बदली
फूल .खुशबू .हरियाली
पहाड़ .उड़ते पंछी
नदियां बहती पूरे वेग
समुद्र शांत
बदली और सूरज की आँख मिचोली
बदली है तो नहीं दिखे सूरज
और सूरज आये तो नहीं दिखे बदली वो
छा गयी हो जैसे तुम मुझे अपनी ओट लें
अब छायी ही रहती है बदली
सूरज को अपनी ओट में ले ....राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-12615349193878797642014-07-05T20:15:00.000-07:002014-07-05T20:15:18.936-07:00अच्छे दिन आएंगे
बहुत मुश्किल और अब असंभव होता जाता है
समय के साथ साझा करना ,प्यार करना
और अपने से इतर किसी दूजे को संतुस्ट करना
कमियों को देखने के लिए बेताब हुआ जनसमूह
कभी भी जो किया गया है जिसमें जो अच्छाई है
उसके बारे बात नहीं करना चाहता
जो हुआ वो होना ही चाहिए था ,
आपने अगर किया तो क्या अहसान हुआ
आपका कर्तव्य है ये काम करने का
इन जुमलों से आपके किये गए कार्यों का स्वागत होता है
ऐसे में तुम उम्मीद लगाए Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-83631433219097442242014-07-04T11:18:00.001-07:002014-07-04T11:18:15.605-07:00 नदियां जब भी रोई है यूँ
नदी बह रही है अब भी
पाट पर चाहे उड़ रहो हो धूल
भीतर ही भीतर जैसे रोता है कुवारा मन
अपनी असमय की भूलों से खाकर ठोकर
नदी भी अपने किनारे पर बसी बस्तियों के प्यार में
लूट कर आज सिसकती सिसकती रेंग रही है जमीन के नीचे
उड़ रही है धूल पाट पर और सूखे खेतो पर
नदियां जब भी रोई है यूँ
ऐसे ही उजड़ी है बस्तियां .....राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-50769759913481345312014-07-03T21:28:00.001-07:002014-07-03T21:43:05.273-07:00उजाड़ है आज मगर
अँधेरे में खिलता हुआ उसका चेहरा
अकेली रातों को सुकून देता है
उजड़ी बगिया के बीच
एक खिला हुआ फूल
जैसे विश्वास दिला देता है की
उजाड़ है आज मगर
बहार आएगी यहाँ जल्दी ही
तुम्हारा चेहरा यो
मेरी याद में आकर
रोज जीवन्त रखता है
मेरा रोजमर्रा .....राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-89885246028767133432014-07-03T08:08:00.001-07:002014-07-03T08:08:36.434-07:00भाव और शब्द
तुम कुछ भी सोचो
बात जो है वो मैं कभी शायद तुम्हे नहीं कह सकूंगा हूबहू जैसा मैं सोच रहा हूँ
हाँ आभास शायद तुम्हे हो
मेरी बात से
और शायद मुझे भी लगे
कि मैं यही कहना चाहता था
भाव और शब्द
आकाश और बादल कि तरह होते है
लगता है कभी आकाश बादल हो गए
और कभी लगता है बादल आकाश हो गए
मगर दोनों अलग है
बहुत अलग .........राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-38705010910047885962014-06-22T11:02:00.001-07:002014-06-22T11:12:35.392-07:00फिर खो गया वो
सरकते हुए जमीन को साथ ले या जमीन के साथ चला जा रहा है वो और समय सांप ज्यूँ चुप चाप अपनी बाम्बी की तरफ बढ़ रहा है हमेशा की तरह बंद होते ही उसका सरकनासमय ने अपने पेट में सरका लिया उसे फिरखो गयावो .........................राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-74240958938269373222014-06-21T20:17:00.003-07:002014-06-21T20:17:56.216-07:00माँ
माँ
तुम्हारे होठों पर हलकी सी मुस्कराहट
अथाह दर्द के बीच
मुझे देख
आई थी
मुझे याद है /
माँ
वो ख़ुशी तुम्हारी
आज
मुझे अपने दर्द में
दवा दे गयी .............राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-16020742770228786932014-06-21T06:48:00.002-07:002014-06-21T06:48:52.403-07:00माँ
धूप में खिल रहा ये हरा
और और हरा होगा
सघन होगा ये वन
छाया होगी
छन कर आती धूप में
हैरान बच्चे के मन
माँ हमेशा
हरियाली होगी .........राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-70467018733544337602014-06-21T05:07:00.000-07:002014-06-21T05:07:15.063-07:00प्रेम
प्रेम
हमेशा
ठंडी हवा की तरह
सुकून देता
हौले से स्पर्श कर
लौटता है
फिर आने के लिए
आश्वस्त करते हुए कि
कोई है
हमारा भी
इतनी बढ़ती हुई
दुनिया में .....
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-80524404997492713902014-06-21T00:55:00.000-07:002014-06-21T00:55:52.730-07:00मुझसे मिलकर
केश तुम्हारे
कितनी बात्तें छिपाएं हुए इंतिज़ार कर रहे है मुझसे मिलने का और तुम्हारी आँखें
कह रही है वो सब
जो तुम्हे कहना है मुझसे मिलकर .....राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-58024037831142308532014-06-20T21:49:00.000-07:002014-06-20T21:49:29.291-07:00याद
तुम्हारी याद
बिखरी है चिड़िया के पाँखों सी
और धूल मैं धूल जैसे रंग में बदल रहे खून सी
हवाएँ भी डर जाती है
इस वीरानी को उड़ाने से
उसे भी डर है
हो न जाए दुनिया फिर सूनसान
अपनी पहचान से पहिले सी ...राकेश मूथा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2344196691456111908.post-45053179140566098532012-09-30T07:42:00.000-07:002012-09-30T07:43:28.041-07:00जो अद्रश्य है
जो अद्रश्य है उसमे अनगिनत अदेखे द्रश्य होते है
कभी खत्म नहीं होने वाली रील चलती रहती है
हम इन अदेखे द्रश्यो को देख कितना बदल जाते है
कभी जितने कुहासे में थे उससे अधिक अँधेरे में खो जाते है
न ख़तम होने वाली इन यात्राओं पर चलते पैर सुन्न हो गए है
रास्ते हैरान है अनुभव ,संज्ञा सब शुन्य होता जाता है
यात्रा के साथ साथ हम सब में विलीन होते होते
एक महासागर में विलीन होती
नदियों के जल की बूँद से Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/12938650631044447394noreply@blogger.com2