रास्ते साफ़ सुथरें हों
फूल हों ,फूलों पर मंडराती तितलियाँ हों
फल हों ,हरे त्तोत्तें हों ,उनको चखते हुए
झरने हों पहाडों पर से झरते हुए
तालाब हो चारों ओर से
पहाडियों से घिरे हुए
आकाश हो ,साफ गहरा नीला
दूर सुदूर मंडराते हुए पक्षी हों
बच्चे हों ,खिलखिलाते ,तुतलाती जबान में बोलते हुए
हवा हो हलकी हलकी गुनगुनाती हुई
चेहरे हों असंख्य ,सभी अलमस्त
एक दुसरे की खैरख्वाह करते हुए
अजान हो दूर से आती हुई
मन्दिर के शंख से ताल मिलाती हुई
गिरिजाघर के घंटों पर नाचती हुई
गुरुद्वारों की सीढियों को साफ़ करती हुई /
इतना
भर हो
मेरी दुनिया में
तब सो सकूँगा चैन से
देख सकूँगा बड़े बड़े सपने
और लिख सकूँगा
कलाम ///
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