भीतर कितना सुकून था
आच्छादित तुझसे
अँधेरे भी रोशन थे
तुझमे में था
और मुझे में तुम
रेशे रेशे बन रहा था
मौन तेरा ले रहा था आकार
रास नहीं ये वासना का
महोत्सव था खुद को विसर्जित करने का
हर पल तू खुद से कुछ निकाल
देती थी --- सवारने मुझे
खो देती खुदको कितनी बार
आज तक न जान पाया तेरा दर्द
जो मेरे सृजन में भोगा तूने
तू हमेशा ही रही मुस्कुराती
और कराहती सिर्फ मेरे दर्द पर
माँ
तू क्यों भूली अपना दर्द ?
और कैसे में भूलू तुझे
नमन नहीं करता तुझको
तेरा दिया में सबको देता हूँ
जो भी आता राह में मेरे
में उसमे तुझे देखता हूँ
यू विश्व भर फैलती है
राज करती है
मेरी
माँ प्यार करती है .....
(कल ९ मई को world mothers day पर मेरी माँ ...आदरणीय कमला मुथा के प्यार को समर्पित ...)
bahut khoob par mothers day to kal hai na...par bahut hi pyari rachna...
ReplyDeletedhanyawad dilip ji aapko ...esliye esit bhi ker diya hai
ReplyDeleteमुनव्वर राणा साहब का एक शेर है-
ReplyDeleteमेरे गुनाहों को इस कदर धो देती है
माँ जब गुस्सा में हो तो रो देती है
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteman ke anchal men bhagwan hota hai mata ka diwas mubarak ho
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 09.05.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
माँ तो केवल देती रही है ... इसलिए तो वो माँ है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
सुंदर रचना... मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteरास नहीं ये वासना का
ReplyDeleteमहोत्सव था खुद को विसर्जित करने का
हर पल तू खुद से कुछ निकाल
देती थी --- सवारने मुझे
खो देती खुदको कितनी बार
bahut badhiya or gahre udgaar hai !!!!!!!!!!
maa to padh kar vibhor ho jaaye .