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Friday, November 13, 2009

भीग आता हूँ अपने प्यार से ...

पहाड़ पर बादल 
रुई के फाहे से 
घेर कर मुझे 
कर देते है गीला 
छेड़ते है 
और पूछते है 
अकेले क्यों यहाँ ?
क्यों नहीं लाय
साथ   उनको..?

और बादलों के संग उड़ 
 मैं बूँद बन 
बरसात की 
भिगो देता  हूँ अपने प्यार को..
भीग आता हूँ अपने प्यार से ...

7 comments:

  1. भिगो देता हूँ अपने प्यार को..
    भीग आता हूँ अपने प्यार से ...
    क्या खूब -- बहुत सुन्दर बादल का सफ़र

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  2. सुंदर प्रेम कविता...

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  3. beautiful description of purity of love...incredible!!!

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  4. waah.........adbhut bhav............prem ka utkrisht roop

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  5. पहाड़ पर बादल
    रुई के फाहे से
    घेर कर मुझे
    कर देते है गीला
    छेड़ते है
    और पूछते है
    अकेले क्यों यहाँ ?
    क्यों नहीं लाय
    साथ उनको..?

    बादलों से ये बातचीत अच्छी लगी ....!!

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