पहाड़ पर बादल
रुई के फाहे से
घेर कर मुझे
कर देते है गीला
छेड़ते है
और पूछते है
अकेले क्यों यहाँ ?
क्यों नहीं लाय
साथ उनको..?
और बादलों के संग उड़
मैं बूँद बन
बरसात की
भिगो देता हूँ अपने प्यार को..
भीग आता हूँ अपने प्यार से ...
भिगो देता हूँ अपने प्यार को..
ReplyDeleteभीग आता हूँ अपने प्यार से ...
क्या खूब -- बहुत सुन्दर बादल का सफ़र
bahoor khoobbbb
ReplyDeleteअति सुन्दर !!
ReplyDeleteसुंदर प्रेम कविता...
ReplyDeletebeautiful description of purity of love...incredible!!!
ReplyDeletewaah.........adbhut bhav............prem ka utkrisht roop
ReplyDeleteपहाड़ पर बादल
ReplyDeleteरुई के फाहे से
घेर कर मुझे
कर देते है गीला
छेड़ते है
और पूछते है
अकेले क्यों यहाँ ?
क्यों नहीं लाय
साथ उनको..?
बादलों से ये बातचीत अच्छी लगी ....!!