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Thursday, May 6, 2010

जो ये जाये सूख तो समझ लेना

बहुत पानी था
पिछले साल तक
इस कुवे में
मीठा इतना की दूर दूर से आते थे लोग
पीने यहाँ पानी
अब
उडती रेत में जैसे तैसे
पहुंचे यहाँ बुझाने अपनी प्यास
तो रोते रोते सुख गए
मन के सोते भी
माँ मेरी कहा करती थी
जब पोता हो मेरा
तो पहिला घूँट
पिलाना गाव के इस कुवे का
ये कुवा नहीं अपना समस्कार है
जीवन मूल्य  है
इसके मीठे पानी जैसा
मधुर व्यवहार
हमारे जीने का है आधार
बेटा इस कुवे में जब तलक है पानी
अपने बच्चों की खुशहाल  रहेगी जिंदगानी
जो ये जाये सूख तो समझ लेना
अब बस .....बस .....समझ लेना ...
मुह से न कहूँ .....कैसे कह सकूँ
समझ ही लेना
इस पानी के साथ जुडी है अपनी जिंदगानी ........

3 comments:

  1. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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  2. bhut khub

    sahi kaha he aap ne

    shabdar

    ReplyDelete