वीणा का हर तार बजने लगा
मौसिम जो ऐसा था
और मुझ पर प्रेम की नज़र भी डाली थी उसने
मुझसे निसरी थी राग
बिन बांसुरी स्वरलहरियां नृत्य करने लगी
और बज उठा हर तार वीणा का
स्पंदन प्रेम का झंकृत कर गया समय को
इतनी ऊर्जा और उल्लास दे गया
कि आज भी उसकी ही याद में
रचित हो रही
फिर ,फिर, दुनिया ...................................राकेश मूथा
मौसिम जो ऐसा था
और मुझ पर प्रेम की नज़र भी डाली थी उसने
मुझसे निसरी थी राग
बिन बांसुरी स्वरलहरियां नृत्य करने लगी
और बज उठा हर तार वीणा का
स्पंदन प्रेम का झंकृत कर गया समय को
इतनी ऊर्जा और उल्लास दे गया
कि आज भी उसकी ही याद में
रचित हो रही
फिर ,फिर, दुनिया ...................................राकेश मूथा