बरसात बंद हो गई इस सावन में कहा आई
भाद्वों का महिना भी कम ही बरसा
सूखे है खेत
सुखी है नदिया
कुए ,तालाब ,नाडे,सारे पोखर
बिन पानी
अस्तित्वहीन केवल है बस
वो कहते है पेड काटें है तुमने
जंगल के जंगल जला दिए है तुमने अपनी हवस में
अब भुगतो अपने कारनामे
में कहता
सारे कुल्हाडे तुम्हारे
लकड़हारे तुम्हारे
लकडियों के कारखाने तुम्हारे
और उस पर
ये तुर्रा सा भाषण
सुनकर
अपनी भावनाओं की बदली में
दिन धोले सूरज ज्यों
मुह छुपा लेता हूँ ////
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