हवा ,धूप,जल
आकाश
बादल
सभी तकते है
कहते है जैसे
हमे नही चाहिए कुछ वापिस
मगर तुम हो की दिए जाते हो इतना
जिसे पाकर हम खो बैठे अपना वजूद
हवा कहती
विषेली
हो गई में कितनी
धूप करती शिकायत
हो गई में आग
जल दुखी मन रोता
कौन कहे मुझे अब जल
मिल गया जब मुझमें मल
आकाश खीजता, चिल्लाता
उपग्रहों
का हो गया में अड्डा
बादल रूठा हुआ कहता
रह गया
में केवल रूप का
छीन
गई बरसात मुझसे ।
समवेत स्वरों में सब कहते ...
अब कृपा करो मानव
कुछ मत दो
हमें
तुमसे कुछ नही चाहिए //