बत्तियां बुझ गयीं
लौट गए सभी दर्शक
खाली है प्रेक्षाग्रह
अभिनेता श्रृंगार कक्ष में
बदलता वेश
खोजता फ़िर अपने को
वेश
अपने अर्थ की तलाश में
अब पड़े है फ़िर
अकेले ///
बहुत खूब अपने अर्थ की तलाश --शायद यह नाटक जीवन का नाटक है.
यही है जीवन का नाटक बहुत गहरे भाव लिये कविता शुभकामनायें
बहुत गहरी रचना.
बहुत खूब
ReplyDeleteअपने अर्थ की तलाश --
शायद यह नाटक जीवन का नाटक है.
यही है जीवन का नाटक बहुत गहरे भाव लिये कविता शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत गहरी रचना.
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