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Monday, September 21, 2009

नाटक

बत्तियां बुझ गयीं

लौट गए सभी दर्शक

खाली है प्रेक्षाग्रह

अभिनेता श्रृंगार कक्ष में

बदलता वेश

खोजता फ़िर अपने को

वेश

अपने अर्थ की तलाश में

अब पड़े है फ़िर

अकेले ///

3 comments:

  1. बहुत खूब
    अपने अर्थ की तलाश --
    शायद यह नाटक जीवन का नाटक है.

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  2. यही है जीवन का नाटक बहुत गहरे भाव लिये कविता शुभकामनायें

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  3. बहुत गहरी रचना.

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