जंगल के भीतर की आग
जब भड़कती है
फ़ैल जाता दावानल
फ़िर सदियों तक जलता है समय
धुंवा और लपटें
आकाश और धरती
दोनों तड़पते
सदियों तलक //
बुझ गए वो दावानल
मगर आँखें
दोनों की
अब भी मिली हुई है एक दूजे से
डरता है जंगल
न भड़के कोई शोला फ़िर ....////
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