Search This Blog

Tuesday, September 22, 2009

आ न सोच

कुछ देर तुम्हारी जुल्फों से खेलु
भूल कर दिन रात का मेरा रोजमर्रा
तुम्हें अपनी बाहों में लेकर सो रहूँ
फ़िर न उठने के लिए
ये पल इस तरह से सहेज लूँ
अपने भीतर
की जगा हुआ भी रहू
हर पल ---तेरे साथ
तेरे बिना /
आ,, न सोच
जिंदगी पूरी काटनी है
तुझे और मुझे
एक दूजे के बगैर ///

1 comment:

  1. वाह बहुत ही सुन्दर
    एक खुबसूरत दास्तान ........

    ReplyDelete