गंध तुम्हारी
कस्तूरी सी
अभी भी
कर रही कोशिश
किसी हरक़त की इस देह से
जिससे निकला में कब का ...
सजा रहा हूँ
तुम्हारी देह के रोएँ रोएँ में
अपनी देह के रोएँ रोएँ ॥
अब दिल लगा तुमसे
त्तो भला
अपनी अलग देह का में क्या करूँ ??
बहुत ही गहरे विचारों से युक्त है आपकी यह उत्कृष्ट रचना.हार्दिक बधाई.चन्द्र मोहन गुप्तजयपुरwww.cmgupta.blogspot.com
This is some thing strange as I read it more I get confused and puzzled and probably, I am not able to get the intent here.I summarize what I understood : you love/admire/miss some one after you loose him/her.
bahut achchhi prastuti hai.
बहुत ही गहरे विचारों से युक्त है आपकी यह उत्कृष्ट रचना.
ReplyDeleteहार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
This is some thing strange as I read it more I get confused and puzzled and probably, I am not able to get the intent here.
ReplyDeleteI summarize what I understood : you love/admire/miss some one after you loose him/her.
bahut achchhi prastuti hai.
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