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Saturday, October 10, 2009

नदी चाहे ठौर

पहाड़ से उतर
मैदानों में इठलाती हुई
प्यास बुजाती सबकी
ख़ुद की बढती प्यास
से लड़ती नदी
कब बुझा पायेगी अपनी प्यास ?
कब रूकेगी
कब पहुचेगी वहा तक
जहा उसे कोई थाम ले
उसके नदी होने का अहसास
हो किसी को
और नदी भी
जान सके वह है नदी
जिसको थाम रहा कोई
यात्री चाहता है ठिकाना
जहा मिले उसे सुकून
और इन्तिज़ार में उसके हो वहां बैठा कोई
जो बीछ जाए उसके स्वागत में
नदी भी चाहे ऐसा कोई ठिकाना
समुद्र ..क्या तुम दोगे नदी को ठौर !

4 comments:

  1. जो बीछ जाए उसके स्वागत में
    नदी भी चाहे ऐसा कोई ठिकाना
    समुद्र ..क्या तुम दोगे नदी को ठौर !

    बहुत बढिया स्वागत है, बधाई

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  2. oh.........behtreen, bhav dil ko choo gaye.

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  3. नदी भी चाहे ऐसा कोई ठिकाना
    समुद्र ..क्या तुम दोगे नदी को ठौर !
    Bahut achhi rachna. Har koi chahata hai thikana.
    Deepawali ki hardik shubhkamnayen.

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