शरीर के बाहिर जो क्षेत्र है
वो भीतर के लहू को गति देता है अब भी
शरीर के भीतर का क्षेत्र
अब तलक स्वत्रन्त्र नही
मोसिम के बदलाव में जब तलक न हो मेरी भूमिका
में रहूँगा अब तब तलक अपने भीतर
निहारता अपने को अपनी ही आँख से
सहलाता ख़ुद अपने को अपने ही अंगों से
जगाऊंगा भीतर ऐसी आग
जिससे बदलेगा मेरा आस पास
जिसे में चाहूँगा
जितना में चाहूँगा
नही तुमसे टकराव की नही है ये बात
यही त्तो करने भेजा है तुमने
शरीर दिया है
ख़ुद की शक्ति को
जिसे पहचान
पुरे करुगा स्वप्न तेरे
तुम दोगे न मेरा साथ ////
bahut hi gahan aur sundar bhav.
ReplyDeleteनही तुमसे टकराव की नही है ये बात
ReplyDeleteयही त्तो करने भेजा है तुमने
बढ़िया भावों से रच-बसी सुन्दर प्रस्तुति. प्रयास सार्थक रहा.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
नही तुमसे टकराव की नही है ये बात
ReplyDeleteयही त्तो करने भेजा है तुमने
शरीर दिया है
ख़ुद की शक्ति को
जिसे पहचान
पुरे करुगा स्वप्न तेरे
तुम दोगे न मेरा साथ.........
क्या बात है ......... बहुत सुन्दर लिखा है ...... तुम दोगे न साथ मेरा ....... बिलकुल देगा ऊपर वाला जरूर दगा आपका साथ .....
वाह वाह क्या बात है! नए अंदाज़ में एक अद्भुत रचना! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteबेहतरीन भाव लिए रचना
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