चिडिया सुबह से
घोसलें में ही है
पेड़ की डालें झुक झुक
बुला रही है
हरे पत्ते मनुहार कर रहे है
फूल भी अपनी सुगंध फैला कर
बाहिर आने का दे रहे है न्योत्ता
मगर चिडिया नही आती बाहिर
पेड़ की सभी चिडिया
आस पास की चिडिया
दूर सुदूर से आई हवाएं
आकाश ,पहाड़ ,धरती
नदियाँ ,समुद्र
सभी परेशान
घोसला ख़ुद हैरान
चुप है चिडिया...मौन ...
अब धीरे धीरे
सब भूल गए
चिडिया और उसकी चहक
नही रहे वे पेड़
वो नदियाँ
कहा रह वो पहाड़
और वो आकाश
वो हवाएं
सब समय के साथ
जीवाश्म हुए
चिडिया के मौन में
रह गए केवल आकार
अपने हसीं समय की याद में .....
बहुत सुंदर कविता...पढ़कर अच्छा लगा...इस तरह की कविताओं की नेट पर जरूरत है...उम्मीद है आगे भी इसे जारी रखेंगे
ReplyDeleteसंसार परिवरतन शील है बहुत सुन्दर कविता है शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है .. समय के साथ बदलाव की कहानी बताती है !!
ReplyDeleteअद्भुत...बहुत गहरी रचना.
ReplyDeleteohhhhh..........bahut hi gahan , adbhut rachna.........badhayi
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