तुम्हारी बनुगां
और बन कर तुम्हारी
सुख दूंगा ओरों को
जैसे देता पेड़ कोई घना
भरी गर्मी में खुद झुल्सुंगा
देने ठंडी ठौर राहगीर को
झेलूँगा बोछारें प्रचंड तूफानों की
प्रेम में तुम्हारे बन छात्ता
आये गयों का बनूँगा शरण्य स्थल
बनूँगा परछाई
तुम्हारी ऎसी
कि शरमाकर खुद खुदा
दौड़ दौड़ आएगा
लेने शरण
तुम्हारी परछाई की
तुम्हारे और मेरे प्यार की ....
अच्छी रचना !!
ReplyDeleteKhud khuda daud ker aayega lene sharan tumhari parchayi ki.....VAAH ek hi shabd kaafi hai ......keep it up.
ReplyDeleteरचना मुझे बहुत अच्छी लगी
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