जितना चुप और मौन है ये बर्फ का मैदान
उतनी ही चुप चाप बह रही है बर्फ को चीर ये नदी
बढ़ता जाता है पाट इसका पल पल
गिरती जा रही है बर्फ
पिघलते जाते है ग्लेशियर
समद्र और उंचा और उंचा
होता जाता है
डूबती जा रही है बस्तियां
भीषण गर्मियों से बढ़ता तापमान
लीलता जाता है
कभी तूफ़ान में ,कभी भूकंप, कभी बाढ़ में ,कभी सूखे में
नेस्तनाबूद होती जाती है जिंदगिया
और हम बेखबर
अब भी काटते है पेड
खोदते है धरती
बनाते है बम्ब
वो सब करते है जिससे
हमारा आज चमन हो
कल की परवाह कौन करे
आज भरें जेब
चाहे आज के कर्म से
बरबाद हो भविष्य
हमारी आने वाली पीढियों का
और चाहे ख़ुद हम पायें कल कष्ट
तब कैसे रुके
ग्लोबल वार्मिंग
चाहे लाख करो सम्मेलन
गोल करों मेज
सब कुछ बदलेगा
अगर तुम
बदलो अपने को
अपने से इतर करो प्यार औरों से
ठहरो रूको समजो
विचार करो
अपने को कुछ समय दो
तब ही तापमान कम होगा
जमेगी फ़िर बर्फ
और बजेगी फ़िर
बंसी चैन की....///////
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जमेगी फ़िर बर्फ
ReplyDeleteऔर बजेगी फ़िर
बंसी चैन की....///////
आशा जगाती और राह दिखाती रचना
WAAH,,,,,,,,,,BAHUT HI BADHIYA LIKHA HAI..........KASH YE JAGRITI SABKO HO JAYE.
ReplyDeletebahut hi nek khyal hai aapake ......kash aisa hona shuru ho jaye.......
ReplyDeleteसब कुछ बदलेगा
ReplyDeleteअगर तुम
बदलो अपने को
अपने से इतर करो प्यार औरों से
ठहरो रूको समजो
विचार करो
अपने को कुछ समय दो
तब ही तापमान कम होगा
जमेगी फ़िर बर्फ
और बजेगी फ़िर
बंसी चैन की....///////
क्या बात कही आपने .. काश हम आनेवाली पीढी के बारे में सोच पाते !!
अपने को कुछ समय दो
ReplyDeleteतब ही तापमान कम होगा
जमेगी फ़िर बर्फ
और बजेगी फ़िर
बंसी चैन की..../
--बहुत सही!!