जाने की जल्दी है समान बांधने की फ़िक्र है
अभी तलक मेरी हर बात में उनका जिक्र है /
क्यों कहे उनसे तेरे शहर में कितनी फिक्र है
इसीलिए शायद हमारी हर बात तेरा जिक्र है //
तेरी जी हुजूरी ही पुस्तों से हमारी रिज्क है
तू इठलाता फिरे कि बस हमे तुजसे इश्क़ है ///
शरीर हमारा क्या है सजा संवरा तिक्क: है
घूमता रहे बदल बदल चेहरे वो एक खिज्र है ////
वो बचता है मुझसे न जाने उसे क्या दिक् है
कहे बस्ती पूरी वो कि उसे मेरी बड़ी फिक्र है /////
१...रिज्क ....रोजी
२ ..तिक्क:..गोस्त का लोथडा
३..दिक् ...परेशानी
बढ़िया ग़ज़ल..........
ReplyDeleteअच्छा लगा बाँच कर
धन्यवाद
उम्मीद है आगे और भी उम्दा कलाम दोगे पढने के लिए...........
आपकी ये गजल अच्छी लगी
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल, राकेश भाई.
ReplyDeleteतेरी जी हुजूरी ही पुस्तों से हमारी रिज्क है
ReplyDeleteतू इठलाता फिरे कि बस हमे तुजसे इश्क़ है ///
बहुत बेहतर.
sundar gazal
ReplyDeleteराकेश जी बढ़िया ग़ज़ल है , बधाई
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