तुमसे मिलने की सोचते सोचते
कटी है कई जन्मो की आयु
हर बार फंस गया में लिप्सा के दलदल में
वासना के फूल मुझे लुभाते है अब भी
इच्छा के जंगल में
अतृप्त में
कैसे मिल पाऊँगी तुमसे
तुम ही आओ मुझे थाम लो
कही किसी गहरे खड्डे समां न जाऊँ
प्रभु ,अब बस करो
मुज पर रहम करो
तुम ख़ुद आकर ले जाओ मुझे
अब बार बार मुझे नही होना है ....
वाह क्या खूब लिखा है !!
ReplyDeleteबेहतरीन, बहुत खूब कहा, राकेश भाई!
ReplyDeleteतुम ही आओ मुझे थाम लो
ReplyDeleteकही किसी गहरे खड्डे समां न जाऊँ
" जीवन के मायाजाल में उलझे एक अत्रप्त मन की वेदना को शब्द देती ये पंक्तिया बेहद सुन्दर बन पडी हैं"
regards
bahut hi goodh prarthna ...........behtreen
ReplyDeleteतुमसे मिलने की सोचते सोचते
ReplyDeleteकटी है कई जन्मो की आयु
आरम्भ ही अद्भुत!!!!
इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
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