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Wednesday, November 25, 2009

समय बंधा रहेगा

शिखर पर पताका फ़हरेगी ये
ये बात ही चमक देती इस सफ़र को
कौन साथ है ,कौन साथ रहेगा
कौन पीछे छूट जायेगा
कोई नहीं ये सोचता

बस  जूनून है
इस पताका और उस शिखर के  मिलन का
साँस चलती है इसलिए की अभी सफ़र बाकी है
साँस रूकने को होती है कि अभी तक इतना सफ़र बाकी है

और किसी तरह ,इस तरह पहुँच कर फेहरा देती हूँ पताका
शिखर  पर फेह्रती इस पताका के संग
में हूँ ,मौन है ,शिखर है ,पताका है
और स्तब्ध समय है

जो बरसों याद करेगा ये पल
में त्तो मुक्त हुई
शिखर भी मुक्त है
समय बंधा रहेगा
इस पताका के संग .....

5 comments:

  1. ek umda vichar ..sundar bhav..badhayi rachan achhi lagi..dhanywaad ji

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  2. बहुत उम्दा भाव राकेश भाई!

    अद्भुत!!

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति...आभार
    regards

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  4. जो बरसों याद करेगा ये पल
    में त्तो मुक्त हुई
    शिखर भी मुक्त है
    समय बंधा रहेगा
    इस पताका के संग .....
    बहुत गहरे भाव लिये सुन्दर कविता शुभकामनायें

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  5. मैं हूँ ,मौन है ,शिखर है ,पताका है
    और स्तब्ध समय है
    --संघर्ष की हकीकत बयान करता एक खूबसूरत दर्शन ।

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