कब तक शिकायत करें
और कब तक चुप चाप रहें
आग लगी है ,उठेगा धुंवा देर तक
समझां लो अपने मन को
और गुजर जाने दो इन दिनों को
डाइरी के उन पन्नो की तरह
जिनको लिखने के बाद किसी ने नहीं पढ़ा
इंतिज़ार करो किसी का
कि कोई आये और पढ़े और बिताये अपना समय
इस कागज के संग
जहाँ ठहरी है पीड़ा शब्द बन
जिसे दीमक भी छोड़ गए है
बेजान समझ जिन्दा रहते मरे हुए जीने को
उस भुरभुरे कागज के शब्द उनके पढने से
जैसे हरे हो जाते है फिर
अपने गुणों के साथ
शायद तुम्हारे जीवन भी आये बदलाव
तब तलक रहो यूहीं चुप चाप......
जहाँ ठहरी है पीड़ा शब्द बन
ReplyDeleteजिसे दीमक भी छोड़ गए है
बेजान समझ जिन्दा रहते मरे हुए जीने को
उस भुरभुरे कागज के शब्द उनके पढने से
जैसे हरे हो जाते है फिर
अपने गुणों के साथ
शायद तुम्हारे जीवन भी आये बदलाव
तब तलक रहो यूहीं चुप चाप......
Bahut khoob ! sundar bhaav !
लाजवाब रचना लगी । बधाई
ReplyDeleteशानदार रचना!!
ReplyDeleteAwesome .............
ReplyDeletebahut hi gahan , shandar rachna.
ReplyDeleteशायद तुम्हारे जीवन में भी आये बदलाव
ReplyDeleteतब तलक रहो यूहीं चुप चाप......
-किसी ने इसी बात को कुछ इस तरह भी लिखा है-
धैर्य हो तो रहो थिर
निकालेगा धुन
समय कोई।
-आपको पढ़कर सकून मिला।
बेजान समझ जिन्दा रहते मरे हुए जीने को
ReplyDeleteउस भुरभुरे कागज के शब्द उनके पढने से
जैसे हरे हो जाते है फिर
अपने गुणों के साथ
शायद तुम्हारे जीवन भी आये बदलाव
तब तलक रहो यूहीं चुप चाप......
सुंदर भाव ....!!