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Thursday, November 26, 2009

तब तलक रहो यूहीं चुप चाप......

कब तक शिकायत करें
और कब तक चुप चाप रहें
आग लगी है ,उठेगा धुंवा देर तक
समझां  लो अपने मन को
और गुजर  जाने दो इन दिनों को
डाइरी के उन पन्नो की तरह
जिनको लिखने के बाद किसी ने नहीं पढ़ा
इंतिज़ार करो किसी का
कि कोई आये और पढ़े और बिताये अपना समय
इस कागज के संग 
जहाँ ठहरी है पीड़ा शब्द  बन
जिसे दीमक भी  छोड़ गए है
बेजान समझ जिन्दा रहते मरे हुए जीने को
उस भुरभुरे  कागज के  शब्द उनके पढने  से
जैसे हरे हो जाते है फिर
अपने गुणों  के साथ
शायद तुम्हारे जीवन भी आये बदलाव
तब तलक रहो यूहीं चुप चाप......

7 comments:

  1. जहाँ ठहरी है पीड़ा शब्द बन
    जिसे दीमक भी छोड़ गए है
    बेजान समझ जिन्दा रहते मरे हुए जीने को
    उस भुरभुरे कागज के शब्द उनके पढने से
    जैसे हरे हो जाते है फिर
    अपने गुणों के साथ
    शायद तुम्हारे जीवन भी आये बदलाव
    तब तलक रहो यूहीं चुप चाप......

    Bahut khoob ! sundar bhaav !

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  2. लाजवाब रचना लगी । बधाई

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  3. शानदार रचना!!

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  4. bahut hi gahan , shandar rachna.

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  5. शायद तुम्हारे जीवन में भी आये बदलाव
    तब तलक रहो यूहीं चुप चाप......
    -किसी ने इसी बात को कुछ इस तरह भी लिखा है-
    धैर्य हो तो रहो थिर
    निकालेगा धुन
    समय कोई।
    -आपको पढ़कर सकून मिला।

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  6. बेजान समझ जिन्दा रहते मरे हुए जीने को
    उस भुरभुरे कागज के शब्द उनके पढने से
    जैसे हरे हो जाते है फिर
    अपने गुणों के साथ
    शायद तुम्हारे जीवन भी आये बदलाव
    तब तलक रहो यूहीं चुप चाप......

    सुंदर भाव ....!!

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