कैसे गुजर गए वे पल
दिन पत्तों की तरह झर गए
अब पीले हुए पड़े है रास्ते पर
हवा की दिशा में अपनी दिशा खोजते
भुर भूरा गए है
सूख कर बस अब
मिलने को है मिटटी में
तब ले गयी है एक चिड़िया उन्हें अपनी चोच में दबाकर
और घोसलें में अपने नवजात का बिस्तर बना लिया है इन पत्तों से
भुर भूरे पत्तों में सिहरन दौड़ी है
मिटने के पहिले प्यार की इस थपकी से
नवजात के परों के इस कोमल स्पर्श से
निहाल हुए पत्ते
अपनी मृत्यु का जश्न मना रहे है /////
कविता के भाव और अभिव्यक्ति की प्रशंसा करता हूँ राकेश जी। बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
kya sundar bhav hain........jahan koi dekh nhi pata aapki nazar to wahan pahunch gayi..........bahut khoob likha hai...........adhayi
ReplyDeleteनिराली अभिव्यक्ति. अति सुन्दर.
ReplyDeleteरचना में एक एक शब्द प्रभावित करता है
ReplyDelete