Search This Blog

Saturday, December 5, 2009

पानी में पानी के मिलने तक

दिन, महीने-  बर्फ की तरह जमते  जाते  है
समय शिला पर
ग्लेशियर  बन जाते है
फिर कभी न पिघलने के लिए
मगर भावनाओं की आंच जब धधकने लगती है
किसी की याद में
तब बहने लगती है बर्फ
याद की नदी बन
जो तुम्हे खोज ले आती है 
अनन्त महासागर से
और फिर बारिश थमती नहीं
सब कुछ धुंधला हो जाता है
पानी में पानी के मिलने तक
समय शिला जो हुई  थी सफ़ेद
अब हरियल घाटी में बदल जाती है ///          .....राकेश

7 comments:

  1. मगर भावनाओं की आंच जब धधकने लगती है
    किसी की याद में
    तब बहने लगती है बर्फ
    याद की नदी बन
    जो तुम्हे खोज ले आती है

    बेहद उम्दा भाव..सुंदर कविता..बधाई

    ReplyDelete
  2. पानी में पानी के मिलने तक
    समय शिला जो हुई थी सफ़ेद
    अब हरियल घाटी में बदल जाती है /


    -अद्भुत!!

    ReplyDelete
  3. मगर भावनाओं की आंच जब धधकने लगती है
    किसी की याद में
    तब बहने लगती है बर्फ
    याद की नदी बन
    जो तुम्हे खोज ले आती है
    अनन्त महासागर से .......

    यादें जब हद से गुज़र जातीं हैं तो तूफान बन जाती हैं, दुवाओं में असर होने लगता है ........ बर्फ की शिलाएँ पिघलने लगती हैं .....भावनाओं की आँच में ताप कर लिखी बेहतरीन रचना ....

    ReplyDelete
  4. Sabse badhiya to aapke blogka naam laga! Kya sundar khyal hai, kiseeko khoj lana anant mahasagar se!

    ReplyDelete
  5. bahut sunder aur sarthak kavitayen hain aapki rakeshji.badhai sweekaren.

    ReplyDelete
  6. सब कुछ धुंधला हो जाता है
    पानी में पानी के मिलने तक
    समय शिला जो हुई थी सफ़ेद
    अब हरियल घाटी में बदल जाती है ///

    बहुत ही सुन्दर एवम भाव विभोर करने वाली पंक्तियां…।
    पूनम

    ReplyDelete