उन्न्नेंदी आँखों से देखती है
उठता धुंवा
फैलती गर्द
मची भगदड़
घरों से
भाग रहे है लोग
जिन घरों में पाती रही है वो अब तक दाना
पीती रही है पानी
गाती रही है उनके बच्चो के लिए-
गाहे बगाहे उनको उदास देख कर
नाची भी है ---जिनके आंगन
आज वे सब जाते है
छोड़ छोड़ अपना घर
बढ़ रहा है धुंवा
उडकर जाने को हुई वो भी
उनके संग
घोंसले में से निकली
-एक क्षण के लिए पेड़ की डाली पर फुदकी-
फिर न जाने क्या हुआ
क़ि लौट गयी - वो घोंसले में
और बहुत देर सर झुकाए
रोती रही ---फिर घोंसले में .......
बस्ती आदमियों से पूरी हो गयी खाली
पेड़ पर चिड़िया मगर चहचहाती रही ........
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDelete