उनके साथ
सोच रहे थे
हम बात कर रहे है
जबकि वो पढ़ते थे
सिर्फ़ हम लिखते थे
हाँ, इतना वे करते थे जरूर
कि हम लिखना बंद करें
उससे पहिले
छेड़ देते थे वे नई बात
जैसे सर्दियों में जब बुझ रह होता है अलाव
और हम और डाल देते है ईधन
ताकि आग उतनी बने रहे
कि हम सेंक सकें अपना शरीर
वे सेंकते है अपना समय
चेटिंग से
खुश है वे
कोई तो है जो दूर -सुदूर से
बिना किसी अपेक्षा के
और बिना उन्हें जाने
उनकी भरता है रोज हाजरी ...
पति के घर में आने से पहिले
बच्चों के आने तक
विदेश में बैठी महिला का
समय को काटने का साधन हैं -ये चेटिंग
और में हूँ कि
सोच बैठता हूँ
कि वे दोस्त है मेरी
ये दोस्ती चलेगी
आने वाली पीढियों तक
और वैमनस्यता ,घृणा ,आतंक
कम होगा ...
मेरा ये प्रेम फैलेगा
और रहेगा
इस दुनिया
मेरे बाद भी.......///