Search This Blog

Thursday, October 1, 2009

एक दिन लौटेगा

रुको
सुनो
ठहरो
मत ताको बाहिर
में हूँ
नही पहिचाना
खुदको
बरसो से कहते गुरु सारे
ग्रंथ सारे ,
मगर अब तक खोजा
तुमने खुदको बाहिर
अरे ,में किस-से कर रहा बात
वो त्तो मशगूल है
मदहोश है
अब भी
बाहिर की दुनिया में ...
मुझे है विस्वास
एक दिन लौटेगा
वो अपने भीतर
तब तलक हूँ
और रहूँगा में उसके भीतर ///

6 comments:

  1. बेहतरीन रचना!!

    ReplyDelete
  2. एक दिन लौटेगा
    वो अपने भीतर
    तब तलक हूँ
    और रहूँगा में उसके भीतर...
    विश्वास बना रहे ...शुभकामनायें ..!!

    ReplyDelete
  3. अरे ,में किस-से कर रहा बात
    वो त्तो मशगूल है
    मदहोश है
    अब भी
    बाहिर की दुनिया में ...
    मुझे है विस्वास
    एक दिन लौटेगा
    वो अपने भीतर
    तब तलक हूँ
    और रहूँगा में उसके भीतर ///

    यही शाश्वत सच है, बाकि सब भ्रम, जिसकी समझ देर से क्यों आती है............

    सुन्दर कविता.
    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

    ReplyDelete
  5. jeevan-darshan
    aur uss ki baareeqeeyoN ko
    samjhaati hui nayaab kavitaa
    ek-ek lafz
    zindgi ke qareeb se ho ke guzraa ho jaise
    abhivaadan svikaareiN
    ---MUFLIS---

    ReplyDelete