कहने को तो जलाली मैंने भी मोमबत्ती
और जल भी गई
मगर भीतर गहरा हो गया अँधेरा
इस प्रकाश से आलोकित
तेरे चेहरे
परावर्तित
हुई रौशनी में दिखा मुझे
मेरा कालापन .......
में तब से अपने अंधेरे
जलाता हूँ
रोज दिया तेरे नाम का
और अपने बढ़ते अन्धकार को
रौशनी के और निकट ,और निकट ले जाता हूँ
शायद हो जाऊँ रोशनी ...एक दिन
Waah ! Aapkee tippnee milee to aapka blog dekha aur padhtee chalee ja rahee hun...saath apnee maa ko bhee suna rahee hun...tasveeron ke saath likhee rachnayen, sajeev ho uthatee hain..
ReplyDelete