सागर जानता है
मोती ,मानिक ,,पन्ने,शंख
ये मछलियाँ
और एक दिन ये पानी
नहीं रहेगा साथ
रहेगी ये मिटटी
जिस पर वो टिका हुआ है
तभी त्तो तट की ओर
लौट लौट आता है
और तट को सुंदर बनाता है
उसे भिगोता है ,छेड़ता है
अपना नाता बनाता है
और अपने पाट की मिटटी और गहरे ,और गहरे
उसकी हर शिरा को भरता है जल से
जो उसके होने को करेगा
हर हाल प्रमाणित
कि सागर है -रहेगा
अपने पानी के साथ .....
बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने । छोटी सी रचना गहरा प्रभाव छोडऩे में समर्थ हैं ।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं । समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
शानदार-हमेशा की तरह!
ReplyDeleteसुन्दर गहरे भाव लिये रचना बधाई
ReplyDeletebahut sunder rachana lagee aapakee . sagar kee gaharai walee .
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