वो जानती है कि मैं क्या चाह रहा हूँ
लोग क्या चाह रहे है
सबकी नज़रें पढ़ लेती है
और सबको देख हंस देती है
मन ही मन कभी खुश होती है
कभी सोच में पड़ जाती है
कामनाएं क्यूँ आँख बन जाती है
सोच कर झटक गर्दन काम पे लग जाती है
और एक दिन दर्पण में उसे जब अपने चेहरे
कामना टंगी हुई दिख जाती है
तब वो सब समझ जाती है ..... . .....राकेश
बहुत खूब। भावपूर्ण।
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