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Friday, April 30, 2010

ज़रा नींद से जागो

बहुत सह लिया
अब उठाओ हथियार तुम
जब भी हों हमले संस्कारों पर ,परम्परों पर ,धर्म पर
चुप चाप न रहो--- दिखाओं  अपनी ताक़त
बेआबरू होकर क्या जीना
संसार हो प्रेम भरा
पर इसके लिए अपने को न गिराओ तुम
जितनी तुमको है चाहना -- उतनी अगर उनको  नहीं तो
क्यों तुम प्रेम करो इतना ?
देखो--- कैसे कैसे हथियारों  से अटा पड़ा है शत्रु
तुम अपनी प्रेम कविताओं से अब उसको न लुभाओ
माना कि गाँधी के देश जन्मे हो तुम
अब अपने भगत सिंह होने का भी उनको रंग दिखाओ
मानते ही नहीं वो ,किये जाते है अपना मनमाना
बेरोकटोक जिनको दिया हमने ये देश
वो बैचे ही जाते है उसकी विरासत
लुटते ही जाते है अस्मतें
और हमारे बीच भोला  सा मुह बनाये
हमको उल्लू बनाये जाते है
खींचो अब ये तलवार
धार इस तलवार की उनको ज़रा दिखाओ
तुम्हारी  एक हुंकार काफी है
ज़रा नींद से जागो
अब अपनी आँखों का लाल रंग इन्हे  दिखलाओ...

3 comments:

  1. ज़रा नींद से जागो
    अब अपनी आँखों का लाल रंग इन्हे दिखलाओ...


    ... बेहद प्रभावशाली

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  2. संसार हो प्रेम भरा
    पर इसके लिए अपने को न गिराओ तुम

    सुन्दर

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  3. बहुत सुन्दर.....उर्जावान रचना.....

    धार इस तलवार की उनको ज़रा दिखाओ
    तुम्हारी एक हुंकार काफी है
    ज़रा नींद से जागो

    अब जागना ज़रूरी है....

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