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Tuesday, November 24, 2009

पानी की बूँद सा

दूर से आती आवाजें
काफी देर आते रहने के बाद
अचानक जब आना बंद हुई
तब अँधेरे ने पुछा मुझसे
यहाँ क्या कर रहे हो आधी रात ?
मैं अचकचाया
खुद से पूछा
अभी तक पूछ रह हूँ
जवाब न आने पर
कितने ही लोगो की ली सहायता
कई स्थानों की यात्राएँ की
ध्यान क्या ,ग्रन्थ पढ़े
जितना खोजा
उतना दूर होता गया खुद से
और अब ये है
कि भूल गया खोजना
डूब गया हूँ अनन्त सागर मैं
हिलोरे लेता अनजान लहरों के संग
पानी की बूँद सा
अविरल बिखरता ,सिमटता
सागर में.......

1 comment:

  1. बहुत उम्दा...हमेशा की तरह. आपकी रचनाओं में एक अलग महक होती है भाई!!

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