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Friday, April 2, 2010

या फिर .....

बाहिर जो  खड़ा है फटेहाल वो सत्य है
झूठ अट्टहास कर इंगित करते है उसकी दशा
बोतले खुलती है ,पायलों की खनक गूंजती है
समय हतप्रभ चुपचाप निरीह प्राणी सा
दिलासा देता है सत्य को ..
ये कोई नया द्रश्य नहीं ...ये तो होता है
इसमे क्या कला है ?
कोंसी वेदना है ?
ये सब कितनी बार दोहराया  जा चूका है
कई बार तो में खुद धकेल चूका हूँ
उस सत्य को जिसने -
मेरी सुविधाओं को  कम करने का बीड़ा उठाया
तब में झूठ के पक्ष था
आज अपनी सुविधाओं पर हुए आक्रमण के कारन
बचाव के लिए सत्य के पक्ष आकर खड़ा  हुआ हूँ
अब तुम ये बताओ - मेरे लीडर 
हम कुछ न करें
अपनी जिम्मेदारी को न निभाएं 
केवल अधिकारों  की मांग करे
भीड़ इकठी कर कैसे अपनी बात मनाएं ?
तभी तो हम यहाँ आयें है
अगर सच्चे  होते तो ??
तुम ज्यों सताए हुए होते ..फटेहाल
खड़े होते ..तुम्हारे साथ ...
झूठों की महफ़िल मुजरा देखने में
मशगूल है ...देर रात तक
बाहिर खड़ा खड़ा सत्य
सो गया है ..शायद
या फिर .....

4 comments:

  1. poonam singh02 April, 2010

    ooooooooooooh! kya baat!
    satya pe chalnaa baal par chalney jaisa hai, ya talwaar ki dhaar par.ye baal aur talwaar ki dhaar asal mei kahiin baahar se nahii aatii, donoN taraf ke jhoothmei se hi nikli bijli si hoti hai.kabhi is oar kabhius oar chamaktii lagtii, par rehtii hai beech mein hi...
    ye teesrii aankh se hi dikhegi, dimaag aur dil ke beech hoti hogii shayad ye teesrii aankh.ya do ardh atyoN ke beech.par ha, isey paaney ke baad thandak parr jaatii hai aur phir iskey liey haNs ke maraa jaa saktaa hai
    aap ko badhaaii, aap dekh saktey hain.khud pe haNs saktey hain,kavita(pyaar) to honi hi thii

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  2. सुन्दर भावों से सजी कविता के लिए बधाई!”

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  3. सत्य तो सदियों से बाहर खड़ा सुने जाने की राह देख रहा है, मुजरा नहीं दिखा सकता न ।

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  4. haqikat me satya so gaya hai shayad. aapki puri kavita ne satya ke halat ka bakhoobi aaj ke samay ke hisab se mulyankan kar diya hai.

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