चिड़िया बहुत दिन हुए उदास है
ऐसा नहीं की उसकी उदासी से बेखबर है पेड़
पते पते खुसफुसाहट है
घोंसले में रोज रोज बिछते है तिनके
जो चिड़िया लाती है उड़ उड़ दूर दूर से
सजावट नित नयी होती है
मगर साँझ पड़े फिर वही उदासी उस घोंसले में अकेली होती है
शांत चुप चिड़िया और ताकते पते
और दूर दूर घूम घूम क्षितिज पार देखता पेड़
अचानक स्पंदन होता है तने में
झूमता है पेड़
पते सारे खिलखिलाते है
घोंसले में से उड़ जाती है उदासी
चिड़िया संग
चोंच से चोंच मिलाता
पसर जाता है
ओर-छोर ---- प्रेम .........
सायंकाल की रक्तिम लालिमा,
ReplyDeleteधरती की छिट-फुट हरीतिमा
के मध्य नीले आकाश में,
एकलय में पंक्तिबद्ध उड़ते हुए
पंछी जब मचाते हैं धमाल,
कोलाहल और करते हैं -
सामूहिक कलरव:....तो
यह मात्र कलोल नहीं होता.
होती है उसमे सम्मिलित वह ख़ुशी
जो अपना पेट भर जाने के बाद
लाते हैं चोंच भरकर बच्चों के लिए..
अपना पवित्र दायित्व समझकर,
ममता के पवित्र बंधन में बंधकर.
कहीं रुकते नहीं, किसी दूसरे गाव में,
अजनवी बाग़ में, अजनवी घोसले में.
परन्तु,
इंसान का जब भी भरा होता है
पेट और भरी होती है - दोनों जेब;
वह जा घुसता है नामी होटलों में.
किसी अजनवी आशियाने में....
अजनवी लोगों के बीच पाने को ख़ुशी.
आखिर वह ख़ुशी क्यों नहीं मिल पाती
उसे अपने ही भरे - पूरे परिवार में...?