जो अद्रश्य है उसमे अनगिनत अदेखे द्रश्य होते है
कभी खत्म नहीं होने वाली रील चलती रहती है
हम इन अदेखे द्रश्यो को देख कितना बदल जाते है
कभी जितने कुहासे में थे उससे अधिक अँधेरे में खो जाते है
न ख़तम होने वाली इन यात्राओं पर चलते पैर सुन्न हो गए है
रास्ते हैरान है अनुभव ,संज्ञा सब शुन्य होता जाता है
यात्रा के साथ साथ हम सब में विलीन होते होते
एक महासागर में विलीन होती
नदियों के जल की बूँद से हो जाते है ......
जो तुम्हारी आँखों से झर मोक्ष प्राप्त करती है ....राकेश
bhavo se purn prastuti
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
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