कल तक जो तपते थे धोरे
वो ठिठुर रहे है
तेज हवाओं में
भीगे भीगे ठहरे है
दूर दूर तक बादल
और धोरों के बीच
पानी नज़र आता है
जैसे तपती दोपहर
बालू पानी की नदी
आती थी नज़र
आज
सपना है या कल था
मगर सपने में
दोनों समय पानी था
रेगिस्तान तभी तो
सच्चा समुद्र है
बालू के हर कण
बहता है ..जो
वही सच्चा पानी है ..
वो ठिठुर रहे है
तेज हवाओं में
भीगे भीगे ठहरे है
दूर दूर तक बादल
और धोरों के बीच
पानी नज़र आता है
जैसे तपती दोपहर
बालू पानी की नदी
आती थी नज़र
आज
सपना है या कल था
मगर सपने में
दोनों समय पानी था
रेगिस्तान तभी तो
सच्चा समुद्र है
बालू के हर कण
बहता है ..जो
वही सच्चा पानी है ..
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteवाह! यही सब तो हो रहा है अभी धोरो में.. बहुत कमाल लिखा है साहब आपने..
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