एक चक्र चल रहा है जिसमे पीसी जा रही है बातें बाते
और अब बात्तों का रसभी निचुड़ चुका है
मगर वो फिराए जा रहा है लगातार
तिनका तिनका हुई बातों को
फिर फिर
सूखी बातों के चलते इस चक्र के बीच
बूढ़ा हो रहा समय
छोड़ता जाता है अपने वीभत्स निशाँ
सुबह अब रात होने के लिए जीती है
रात भी जैसे तैसे काटती है समय
न तो सूरज ,न चाँद, ना तारे
न फूल न भंवरे ,न नदिया
न ही सागर ,न क्षितिज
न कोई रंग ..बस चीख चीख
शब्दों की लम्बी चीखे
और भागता मौन
और आवाजें
बातों की चक्की
के लगातार चलने की
हाँ मगर इस सब मैं भी
चुग रही है हंस की तरह वो
उन सुंदर बातों को
जो शायद बदले ये दुनिया
उन शब्दों की उष्मा से .....
bahut khub sir ji...
ReplyDeletejai hind jai bharart
खुबसूरत कविता
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं