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Sunday, September 6, 2009

पहचान

सीमा को पहचानना है
अभी तुम्हे
शेष
अभी तुम स्वतंत्र हो
अभी तुम स्वछंद हो
आकाश है जहा तक देखो

फैलता हुआ सागर है
आकाश छूती पर्वत चोटियाँ है
नहीं ,अब ऐसे नहीं चलेगा
एक लक्ष्य को भेदने के लिए आवश्यक है
सब कुछ भूल सिर्फ लक्ष्य तक सिमित हो जाओ
तुम चाहे जगमगाओं आकाश सितारा बन
सागर करो साफ़ मछली बन
फेह्राओं पताका हवा बन
मगर
अब सही वक़्त है जब तुम पहचानो अपना लक्ष्य
फलक कितना ही हो विस्तृत
मगर अस्तित्व को अपने
देनी होगी
पहचान सार्थक .......

1 comment:

  1. this is gadhay not kavita. please take it in constructive appriciation

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