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Saturday, October 10, 2009

तुम दोगे ना मेरा साथ

शरीर के बाहिर जो क्षेत्र है

वो भीतर के लहू को गति देता है अब भी

शरीर के भीतर का क्षेत्र

अब तलक स्वत्रन्त्र नही

मोसिम के बदलाव में जब तलक न हो मेरी भूमिका

में रहूँगा अब तब तलक अपने भीतर

निहारता अपने को अपनी ही आँख से

सहलाता ख़ुद अपने को अपने ही अंगों से

जगाऊंगा भीतर ऐसी आग

जिससे बदलेगा मेरा आस पास

जिसे में चाहूँगा

जितना में चाहूँगा

नही तुमसे टकराव की नही है ये बात

यही त्तो करने भेजा है तुमने

शरीर दिया है

ख़ुद की शक्ति को

जिसे पहचान

पुरे करुगा स्वप्न तेरे

तुम दोगे न मेरा साथ ////

5 comments:

  1. bahut hi gahan aur sundar bhav.

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  2. नही तुमसे टकराव की नही है ये बात
    यही त्तो करने भेजा है तुमने

    बढ़िया भावों से रच-बसी सुन्दर प्रस्तुति. प्रयास सार्थक रहा.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  3. नही तुमसे टकराव की नही है ये बात
    यही त्तो करने भेजा है तुमने
    शरीर दिया है
    ख़ुद की शक्ति को
    जिसे पहचान
    पुरे करुगा स्वप्न तेरे
    तुम दोगे न मेरा साथ.........
    क्या बात है ......... बहुत सुन्दर लिखा है ...... तुम दोगे न साथ मेरा ....... बिलकुल देगा ऊपर वाला जरूर दगा आपका साथ .....

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  4. वाह वाह क्या बात है! नए अंदाज़ में एक अद्भुत रचना! शानदार प्रस्तुती!

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  5. बेहतरीन भाव लिए रचना

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