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Friday, October 9, 2009

अब बार बार मुझे नही होना है


तुमसे मिलने की सोचते सोचते
कटी है कई जन्मो की आयु
हर बार फंस गया में लिप्सा के दलदल में
वासना के फूल मुझे लुभाते है अब भी
इच्छा के जंगल में
अतृप्त में
कैसे मिल पाऊँगी तुमसे
तुम ही आओ मुझे थाम लो
कही किसी गहरे खड्डे समां न जाऊँ
प्रभु ,अब बस करो
मुज पर रहम करो
तुम ख़ुद आकर ले जाओ मुझे
अब बार बार मुझे नही होना है ....

6 comments:

  1. वाह क्या खूब लिखा है !!

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  2. बेहतरीन, बहुत खूब कहा, राकेश भाई!

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  3. तुम ही आओ मुझे थाम लो
    कही किसी गहरे खड्डे समां न जाऊँ
    " जीवन के मायाजाल में उलझे एक अत्रप्त मन की वेदना को शब्द देती ये पंक्तिया बेहद सुन्दर बन पडी हैं"

    regards

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  4. bahut hi goodh prarthna ...........behtreen

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  5. तुमसे मिलने की सोचते सोचते
    कटी है कई जन्मो की आयु
    आरम्भ ही अद्भुत!!!!

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  6. इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

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