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Thursday, October 22, 2009

जिसे में भी निभाऊंगा ....

कहा से चले थे
किधर को चले थे
कहा पहुँच गए
ठहर कर पहिले कभी सोचा नही

आज क्यों ये सब सोचना पड़ा ??
तुम्हारे साथ रहकर
तुमसे अलग क्यों आए ये सब विचार
कमरे के कोने में पड़ा कचरा
घर में बिखरी चीजें
सब कुछ अस्त व्यस्त लगने लगा
तुम भी अजनबी सी
इस घर में लगने लगी
इतने सालों बाद
हुआ ये ?
और इसे में ही देख पा रहा हूँ
तुम त्तो अब भी बेखबर
बिंदास अपने को बाखबर
सब प्रश्नों से टलकर
ताक रही हो मुझे
शायद देखना चाहती हो
अब में क्या करूंगा
और में समझ जाता हूँ
चूप रह कर सब कुछ देखते रहने में ही
मर्यादा है
जिसे तुम भी निभाओ अब
जिसे में भी निभाऊंगा ....

3 comments:

  1. यह देखें Dewlance Web Hosting - Earn Money

    सायद आपको यह प्रोग्राम अच्छा लगे!


    अपने देश के लोगों का सपोर्ट करने पर हमारा देश एक दिन सबसे आगे होगा

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  2. sath hokar bhi ajnabi pan ke ahsaason ko bakhubi piroya hai.

    ReplyDelete