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Monday, October 19, 2009

परछाई

तुम्हारी बनुगां
और बन कर तुम्हारी
सुख दूंगा ओरों को
जैसे देता पेड़ कोई घना
भरी गर्मी में खुद झुल्सुंगा
देने ठंडी ठौर राहगीर को
झेलूँगा बोछारें प्रचंड तूफानों की
प्रेम में तुम्हारे बन छात्ता
आये गयों का बनूँगा शरण्य स्थल
बनूँगा परछाई
तुम्हारी ऎसी
कि शरमाकर खुद खुदा
दौड़ दौड़ आएगा
लेने शरण
तुम्हारी परछाई की
तुम्हारे और मेरे प्यार की ....

3 comments:

  1. Khud khuda daud ker aayega lene sharan tumhari parchayi ki.....VAAH ek hi shabd kaafi hai ......keep it up.

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  2. रचना मुझे बहुत अच्छी लगी

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