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Wednesday, November 11, 2009

उसकी हलकी होती छाप को ....

बहुत बड़ी हो गयी दुनिया 
यकायक जब मिला उनसे 
जाना कितना बड़ा होता है 
सागर 
और कितनी छोटी  होती है लहर 
और स्तब्ध लौट आया घर 
जैसे सागर से छूट 
आ जाती है लहर 


और सुखा देती है अपना पानी 
रेत पर छप  रहती  है लहर 
कुछ देर तक  

मैं भी  
ढूंढ़ता हूँ अपने मैं 
सूख गयी उसकी याद को 
और उसकी हलकी होती छाप को .....

6 comments:

  1. मैं भी
    ढूंढ़ता हूँ अपने मैं
    सूख गयी उसकी याद को
    और उसकी हलकी होती छाप को ....
    वाह१ बहुत सुन्दर. समय ऐसा ही बलवान है...न चाहते हुए भी यादें धुंधला ही जाती हैं.

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  2. बहुत बड़ी हो गयी दुनिया
    यकायक जब मिला उनसे
    जाना कितना बड़ा होता है
    सागर
    Sagar ki gahraai man jaisi hi gahari hoti hai.
    Gahari bhav liye aapki rachna bahut kuch kahati hai.
    Badhai.

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  3. सागर
    और कितनी छोटी होती है लहर
    और स्तब्ध लौट आया घर
    जैसे सागर से छूट
    आ जाती है लहर
    एक सुन्दर रचना है.
    महावीर शर्मा

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