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Monday, November 30, 2009

अपने पानी के साथ .....

सागर जानता है
मोती ,मानिक ,,पन्ने,शंख
ये मछलियाँ
और एक दिन ये पानी
नहीं रहेगा साथ
रहेगी ये मिटटी
जिस पर वो टिका हुआ है
तभी त्तो तट की ओर
लौट लौट आता है
और तट को सुंदर बनाता है
उसे भिगोता है ,छेड़ता है
अपना नाता बनाता है
और अपने पाट की मिटटी  और गहरे ,और गहरे
उसकी हर शिरा को भरता  है जल से
जो उसके होने को करेगा
हर हाल प्रमाणित
कि सागर है -रहेगा
अपने पानी के साथ .....

4 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने । छोटी सी रचना गहरा प्रभाव छोडऩे में समर्थ हैं ।

    मैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं । समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
    http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

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  2. शानदार-हमेशा की तरह!

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  3. सुन्दर गहरे भाव लिये रचना बधाई

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  4. bahut sunder rachana lagee aapakee . sagar kee gaharai walee .

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