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Wednesday, December 9, 2009

अपनी मृत्यु का जश्न मना रहे है

कैसे गुजर  गए वे पल
दिन पत्तों की तरह झर गए
अब पीले हुए पड़े है रास्ते पर
हवा की दिशा में अपनी दिशा खोजते
भुर भूरा गए है
सूख कर बस अब
मिलने को है मिटटी में 
तब ले गयी है एक चिड़िया उन्हें अपनी चोच में दबाकर
और घोसलें में अपने नवजात का बिस्तर  बना लिया है इन पत्तों से
भुर भूरे पत्तों में सिहरन दौड़ी है
मिटने के पहिले प्यार की इस थपकी से
नवजात के परों के इस कोमल स्पर्श से
निहाल हुए पत्ते
अपनी मृत्यु का जश्न मना रहे है /////

4 comments:

  1. कविता के भाव और अभिव्यक्ति की प्रशंसा करता हूँ राकेश जी। बहुत ही सुन्दर।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. kya sundar bhav hain........jahan koi dekh nhi pata aapki nazar to wahan pahunch gayi..........bahut khoob likha hai...........adhayi

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  3. निराली अभिव्यक्ति. अति सुन्दर.

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  4. रचना में एक एक शब्द प्रभावित करता है

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