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Wednesday, December 16, 2009

माँ ,तूने भी भोगा ये सब ?

घर छोड़ आई
तेरे घर को अपना बनाया
माँ तुम्हारी
पिता तुम्हारे
तुम्हारे भाई बहिन
नाते रिश्तेदार सारे तुम्हारे
उस पर नाज नखरे
नुक्ता ची ,छींटाकशी
सब प्यार में लिपटी
बेस्वाद आवभगत
और मेरी ओर ताकते अंजाने चेहरे
ढूंढते मुझमे अपने ख्वाब
अपने सपनो  को खोजते
कभी निराश ,कभी खुश चेहरे तुम्हारे
माँ ,तूने भी भोगा ये सब ?
फिर क्यूँ भेज दिया ..मुझे यहाँ
भोगने ये सब ?

6 comments:

  1. कितना सच्चा और सुन्दर चित्रण!

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  2. बहुत सुन्दर और भावनामय अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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  3. dhanyawad vandanaji ,sumanji,nirmlaji,vandanaji..acha laga ki meri baat aap tak pahunchi ..aapki sarahna mera marg prashast keregi...aabhar

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  4. This comment has been removed by the author.

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