पेड़ पे चिड़िया उदास है
सुबह से उठता ही नहीं बेटा
न हिलता डुलता
पड़ा है निरा शरीर
बार बार उड़ उड़ कर चिल्लाई वो
सब खामोश है
आकाश नीला है
पेड हरा ,हवा बेचारी ठहरी है ठिठक
कुछ कोव्वे आये है
मंडराते कह गए है
अब नहीं ये तेरा बेटा
क्यों चिल्लाती
खाने दे हमें ..पेट भर जायेगा हमारा
और चिड़िया छोड़ देती घोंसला
सुनती अपने बेटे को अपने में
और चहचहाती दुनिया के लिए
उडती है ......
badee hee marmik par such kee dastan dil ko choo gayee......
ReplyDeleteहर बार की तरह नए शब्दों और प्रयागों के माध्यम से एक और शानदार रचना - हार्दिक बधाई और धन्यवाद्.
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