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Friday, April 23, 2010

खुद अपने से क्यों नहीं मिल पाते है

कभी कभी जंगल  में चलते हुए
जब सुनते है अपनी पदचाप
सिहर जाते है भीतर  तक
रूकते नही है
मगर रूक जाते है
देखते है अपने भीतर
बढ़ रहा है जो जंगल
उसके अंधेरों में अपने को फंसा हुआ पाते है
राह  खोजते है चलते हुए
अपने भीतर रूक कर
पाते है अपना आप
जंगल में वो मिल जाता है
जिससे मिलने के लिए
तरसते  है पूरे जीवन
मिल कर फिर क्यों जुदाहो  जाते है
जंगल  से निकल  हम
भीतर क्यों बढ़ा  लेते है फिर जंगल
शहरों  में पहुँच कहा खो जाते है हम
खुद अपने से क्यों नहीं मिल पाते है ?

3 comments:

  1. खुद अपने से क्यों नहीं मिल पाते है ?
    शायद खुद के अन्दर आरोपित जंगल को हम जुदा ही नहीं कर पाते हैं
    सुन्दर कविता

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  3. जंगल का एकाकीपन हमें स्वयं से बातें करने को बाध्य कर देता है । शहर की तड़क भड़क हमसे वह सुख छीन लेती है ।

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