अँधेरे में हिरन
तेज और तेज दौड़ता
आतुर होता
चन्द्र किरणों का हाथ पकड़
भागा जाता है
चाँद को छूने
अपनी बाहों में लेने
टांगो में उसके दौड़ती है कामनाये
आँखों में उसके पसरती जाती है ललक
मंजिल मिलेगी नहीं
यह जानता है हिरन
और यही बात उसको देती है ताक़त
असंभव को संभव बना देने की प्यास भड़कती है
हिरन की दौड़ में
दीवानगी की हद तक
पसरती जाती है प्यास
दौड़ और तेज.. और तेज होती जाती है
शायद चाँद रीझ जाएगा
कभी
हिरन की बाँहों में आ रहेगा .......
शायद....बहुत उम्दा ख्याल!! बढ़िया है.
ReplyDeleteहिरन की दौड़ ...कहीं माया- मृग तो नहीं ...
ReplyDeleteचाँद पर रीझना तो ठीक ...चाँद भी रीझ जाये ये क्या जरुरी है ...
कविता बढ़िया है ...!!
waah waah .......
ReplyDeletekaamal ki kavita hai
hiran ka chand ke prti akarshan