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Tuesday, May 11, 2010

इस कड़ी धूप के हवाले .....

उसको समझो तो सही
कड़ी धूप में आया है-- तुम तक प्यासा
सुनो, वो क्या कहना चाहता है
सुनकर धोड़ी देर  ही सही उसकी धूप में झुलसो
उसके पांवों के छालों को न सहलाओ
मगर उन से निकलती पीप से सिहरो  तो सही
कितनी आस लेकर तुम तक पहुंचा है
अपनी कुर्सी से हिलो तो सही
जो तुम्हे मिली है शक्ति
उसका इस्तेमाल तो करो ....
वो सुनते  है  हर बात
और मुस्कुराते हुए 
देते  है दिलासा .....बस इतना सा भरोसा
अब भाषण  मत दो
हमने  सुन लिया है
हम करेंगे जो हमें करना है
और साथ में उठती है समवेत कई आवाजें
बस... अब आप जाइए
हुज़ूर ने कहा है तो जरुर पूरी होगी आपकी प्रार्थना
और कड़ी धूप में नंगे  पांवो चलते
वो लौट जाता  है
हर बार की तरह
उडती है धूल..चेहरे पर सलवटें बढती है
एक चेहरा झुरियों के हवाले कांपता है
शायद ये आज उसका है आखिरी दिन ......
तम्बू उखड गए है
सारा लवाजमा
धूल उड़ाता छोड़ गया है
कई आशाओं को अपने पीछे
बंजर बियाबान में
इस कड़ी धूप के हवाले .....

6 comments:

  1. उडती है धूल..चेहरे पर सलवटें बढती है
    एक चेहरा झुरियों के हवाले कांपता है
    शायद ये आज उसका है आखिरी दिन ......
    waah bahut hi sundar aur bhavpQurit panktiyan

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  2. हर बार की तरह
    उडती है धूल..चेहरे पर सलवटें बढती है
    एक चेहरा झुरियों के हवाले कांपता है

    -भावपूर्ण रचना, राकेश भाई.

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  3. उडती है धूल..चेहरे पर सलवटें बढती है
    एक चेहरा झुरियों के हवाले कांपता है
    शायद ये आज उसका है आखिरी दिन ......sundar pannktiya...ek achhi kavita ke saath

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  4. गहराई में ले गयी कविता ।

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  5. फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

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