उसको समझो तो सही
कड़ी धूप में आया है-- तुम तक प्यासा
सुनो, वो क्या कहना चाहता है
सुनकर धोड़ी देर ही सही उसकी धूप में झुलसो
उसके पांवों के छालों को न सहलाओ
मगर उन से निकलती पीप से सिहरो तो सही
कितनी आस लेकर तुम तक पहुंचा है
अपनी कुर्सी से हिलो तो सही
जो तुम्हे मिली है शक्ति
उसका इस्तेमाल तो करो ....
वो सुनते है हर बात
और मुस्कुराते हुए
देते है दिलासा .....बस इतना सा भरोसा
अब भाषण मत दो
हमने सुन लिया है
हम करेंगे जो हमें करना है
और साथ में उठती है समवेत कई आवाजें
बस... अब आप जाइए
हुज़ूर ने कहा है तो जरुर पूरी होगी आपकी प्रार्थना
और कड़ी धूप में नंगे पांवो चलते
वो लौट जाता है
हर बार की तरह
उडती है धूल..चेहरे पर सलवटें बढती है
एक चेहरा झुरियों के हवाले कांपता है
शायद ये आज उसका है आखिरी दिन ......
तम्बू उखड गए है
सारा लवाजमा
धूल उड़ाता छोड़ गया है
कई आशाओं को अपने पीछे
बंजर बियाबान में
इस कड़ी धूप के हवाले .....
उडती है धूल..चेहरे पर सलवटें बढती है
ReplyDeleteएक चेहरा झुरियों के हवाले कांपता है
शायद ये आज उसका है आखिरी दिन ......
waah bahut hi sundar aur bhavpQurit panktiyan
हर बार की तरह
ReplyDeleteउडती है धूल..चेहरे पर सलवटें बढती है
एक चेहरा झुरियों के हवाले कांपता है
-भावपूर्ण रचना, राकेश भाई.
उडती है धूल..चेहरे पर सलवटें बढती है
ReplyDeleteएक चेहरा झुरियों के हवाले कांपता है
शायद ये आज उसका है आखिरी दिन ......sundar pannktiya...ek achhi kavita ke saath
गहराई में ले गयी कविता ।
ReplyDeleteफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteउत्तम रचना ।
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