जंगलों के भीतर आग
अपने हरे के साथ
कभी तितली है
कभी चिड़िया
कभी चील और बाज़
लों की तरह
आते है फूल
फल ..कुछ देर रहती है लों
सन्नाटें में जैसे
तानी है राग उसने
दिखाया है हुनर
बजाया है अपना कोई साज
मगर तुम्हारे ये सारे हुनर
ये राग ,ये लों,ये जंगल
मुझे तुम तक कभी नहीं ले जाते
बल्कि यों कहूँ तो सच है
मेरी प्रिया के होने पर
न होने पर
निर्भेर है सारे राग और रंग
अब चाहे तुम कुछ भी कहो...
प्रिया या प्रिया की याद
ही
जगाती है मुझमे दुनिया .....
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमगर तुम्हारे ये सारे हुनर
ReplyDeleteये राग ,ये लों,ये जंगल
मुझे तुम तक कभी नहीं ले जाते
sunder bhav.....